मोदी BRICS समिट के लिए ब्राजील रवाना:पहली बार 11 सदस्य देश बैठक करेंगे; 12वीं बार शामिल होंगे PM, अगले दिन राजकीय दौरा करेंगे​​​

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी BRICS समिट में शामिल होने के लिए ब्राजील रवाना हो गए हैं। BRICS देशों की 17वीं समिट का आयोजन ब्राजील के प्रसिद्ध रियो जी जेनेरो शहर में हो रहा है। मोदी 12वीं बार इस समिट का हिस्सा बनेंगे। PM मोदी BRICS के कई सदस्य देशों के नेताओं के साथ द्विपक्षीय बातचीत भी करेंगे। इस बार BRICS समिट का एजेंडा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)​​​​ का सही इस्तेमाल, क्लाइमेट एक्शन, ग्लोबल हैल्थ जैसे मुद्दे होंगे। भारत BRICS समिट में सीमा पार आतंकवाद पर अपनी चिंताओं को दोहरा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी का ब्राजील दौरा 3 दिन का है। वे दो दिन के लिए राजकीय दौरे पर राजधानी ब्रासीलिया भी जाएंगे। यहां वे राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा से द्विपक्षीय मुलाकात करेंगे। BRICS क्या है?
BRICS 11 प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का एक समूह है। इनमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), सऊदी अरब और इंडोनेशिया शामिल हैं। इसका मकसद इन देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सहयोग को बढ़ावा देना है। इसमें शुरुआत में 4 देश थे, जिसे BRIC कहा जाता था। यह नाम 2001 में गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ने दिया था। तब उन्होंने कहा था कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन आने वाले दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएंगे। बाद में ये देश एक साथ आए और इस नाम को अपनाया। ब्राजील से आकाश डिफेंस सिस्टम पर डील की संभावना
प्रधानमंत्री मोदी की ब्राजील यात्रा पर भारत में ब्राजील के राजदूत केनेथ फेलिक्स हैक्जिंस्की दा नोब्रेगा ने 3 जुलाई को बताया कि भारत ब्राजील को आकाश डिफेंस सिस्टम, गश्ती जहाज बेचने पर चर्चा कर सकता है। दोनों देशों के बीच स्कॉर्पीन क्लास की पनडुब्बी के प्रबंधन पर MoU साइन करने की संभावना है, क्योंकि ब्राजील ने फ्रांसीसी पनडुब्बियां भी खरीदी हैं। ब्राजील के राजदूत ने कहा, ‘PM मोदी की ब्राजील यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों में काफी तेजी आई है। जब प्रधानमंत्री मोदी G-20 समिट के लिए ब्राजील में थे, तो ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा और प्रधानमंत्री मोदी ने 2000 करोड़ रुपए के बिजनेस टारगेट का लक्ष्य रखा था, जिसपर अब और भी जोर दिया जाएगा।’ BRICS को बनाने की जरूरत और आगे का सफर सोवियत संघ के पतन के बाद और 2000 के शुरुआती सालों में दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पश्चिमी देशों का दबदबा था। अमेरिका का डॉलर और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) फैसले करती थीं। इस अमेरिकी दबदबे को कम करने के लिए रूस, भारत, चीन और ब्राजील BRIC के तौर पर साथ आए, जो बाद में BRICS हो गया। इन देशों का मकसद ग्लोबल साउथ यानी विकासशील और गरीब देशों की आवाज को मजबूती देना था। 2008-2009 में जब पश्चिमी देश आर्थिक संकट से गुजर रहे थे। तब BRICS देशों की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही थी। आर्थिक संकट से पहले पश्चिमी देश दुनिया की 60% से 80% अर्थव्यवस्था को कंट्रोल कर रहे थे, लेकिन मंदी के दौर में BRICS देशों की इकोनॉमिक ग्रोथ से पता चला कि इनमें तेजी से बढ़ने और पश्चिमी देशों को टक्कर देने की क्षमता है। 2009 में रूस के येकातेरिनबर्ग में हुई बैठक में BRICS देशों ने मल्टीपोलर वर्ल्ड यानी बहुध्रुवीय दुनिया की कल्पना की गई, जहां पश्चिमी देशों की आर्थिक पकड़ कमज़ोर हो और सभी देशों को बराबरी का हक मिले। 2014 में BRICS ने एक बड़ा कदम उठाते हुए न्यू डेवलपमेंट बैंक बनाया, जो इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए फंड देता है। इसके साथ-साथ एक रिजर्व फंड भी बनाया गया ताकि आर्थिक संकट के समय इन देशों को अमेरिकी डॉलर पर निर्भर न रहना पड़े। ब्राजील में हो रही BRICS समिट खास क्यों ब्राजील के रियो डी जेनेरो में BRICS समिट 2025 का आयोजन ‘ग्लोबल ऑर्डर के लिए ग्लोबल साउथ का सहयोग’ की थीम पर किया जा रहा है। इस बार होने वाली बैठक में पहली बार 11 सदस्य देश शामिल हो रहे हैं। इसके अलावा 13 पार्टनर कंट्रीस भी हिस्सा ले रही हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा BRICS को पश्चिमी देशों के विरोधी के बजाय समावेशी संगठन के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। जिसका मकसद समावेशी विकास, खाद्य सुरक्षा और क्लाइमेट जस्टिस जैसे मुद्दों पर बात करना है। BRICS समिट 2025 में 3 मुद्दों पर फोकस रहने वाला है- पश्चिमी देशों के लिए BRICS एक चुनौती BRICS देशों में पिछले कई सालों से SWIFT पेमेंट सिस्टम की तर्ज पर अपना पेमेंट सिस्टम बनाने की चर्चा होती रही है। हालांकि इसे लेकर अभी तक कोई सहमति बन नहीं पाई है और न ही कोई ठोस कदम उठाए गए हैं। 2023 में ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने एक समिट के दौरान कहा था कि BRICS संगठन के देशों को व्यापार के लिए एक नई करेंसी बनाने की जरूरत है। उन्होंने सवाल उठाया था कि हम क्यों डॉलर में ट्रेड कर रहे हैं। BRICS देशों के पेमेंट सिस्टम और अपनी करेंसी बनाने का आइडिया हमेशा से पश्चिमी देशों खासतौर पर अमेरिका के लिए चिंता का विषय रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ने शपथ ग्रहण से पहले ही पिछले साल दिसंबर में चेतावनी दी थी कि अगर BRICS देश ऐसा करते हैं तो उन पर 100% टैरिफ लगेगा। ट्रम्प ने इसे अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने की साजिश बताया था। हालांकि इस सब के बीच भारत अपना रुख साफ कर चुका है। दिसंबर 2024 में कतर की राजधानी दोहा में एक फोरम में बोलते हुए जयशंकर ने कहा था कि अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने में भारत की कोई रुचि नहीं है।

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