छत्तीसगढ़ शराब घोटाला केस में EOW ने रायपुर की स्पेशल कोर्ट में करीब 1100 पन्नों का चौथा पूरक चालान पेश किया है। इसमें लखमा के घोटाले में शामिल होने के सबूत हैं। कवासी लखमा को सामान और मिठाई जैसे कोडवर्ड से 64 करोड़ रुपए कमीशन के मिले। EOW की चार्जशीट के मुताबिक कवासी लखमा के बंगले में हर महीने 2 करोड़ रुपए पहुंचता था। आबकारी विभाग के कर्मचारी रोजमर्रा के सामान के साथ शराब और पैसों का बैग लेकर आते थे। यह पैसा सरकारी गाड़ियों के माध्यम से बंगले के अंदर सीधे आता था। हर महीने 2 करोड़ रुपए कवासी लखमा के तत्कालीन OSD जयंत देवांगन के हाथों में दिया जाता था। जयंत देवांगन, केयर टेकर्स की मदद से अलग-अलग कमरों में रखवाते थे। EOW के अधिकारियों ने लखमा के 27 करीबियों से बयान लेकर इस बात का साक्ष्य इकट्ठा किया है। तत्कालीन मंत्री ने इस रकम को जमीन, मकान और भरोसेमंद लोगों के ऊपर इन्वेस्ट करके ठिकाने लगाया। बेटे के लिए 1.4 और खुद के लिए 2.24 करोड़ में मकान बनाया। बहू-बेटियों समेत कई कारोबारियों के नाम 18 करोड़ का निवेश किया। इस रिपोर्ट में पढ़िए कवासी लखमा को कैसे और कब पहुंचता था कमीशन, जिसे निवेश कर ठिकाने लगाया गया ? जानिए मंत्री बंगले तक कैसे पहुंचता था पैसा ? पार्ट-1: शराब दुकानों में सिंडिकेट डुप्लीकेट होलोग्राम वाली शराब बेचता था। इसे बी पार्ट शराब सिंडिकेट के सदस्यों ने नाम दिया था। बी पार्ट की शराब बिक्री होने पर CSMCL को प्रति पेटी 150 रुपए मिलता था। इस पैसे के एवज में आबकारी मंत्री कवासी लखमा काे 50 लाख रुपए हर महीने दिया जाता था। यह पैसा एमडी अरुण पति त्रिपाठी के निर्देश देने पर आबकारी अधिकारी जनार्दन कौरव और इकबाल खान एजेंटों की मदद से इकट्ठा कराते थे। पैसा आबकारी सब इंस्पेक्टर कन्हैया लाल कुर्रे के माध्यम से SOD जयंत देवांगन को दिया जाता था। जयंत देवांगन पैसे को मंत्री तक पहुंचाता था। आबकारी मंत्री को ढेबर भेजता था हर महीने डेढ़ करोड़ पार्ट-2: शासकीय शराब दुकानों से बेची गई पार्ट–बी शराब में हर महीने अनवर ढेबर डेढ़ करोड़ रुपए आबकारी मंत्री को भेजता था। यह पैसा सिंडिकेट के मुख्य कर्ताधर्ता अरविंद सिंह और विकास अग्रवाल के द्वारा अमित सिंह को दिया जाता था। अमित सिंह ये पैसा प्रकाश शर्मा उर्फ छोटू की मदद से महिंद्रा बस सर्विसेज के मालिक इंदरदीप सिंह गिल उर्फ इनू और कमलेश नाहटा की बताई जगहों पर पहुंचाता था। ओएसडी जयंत देवांगन को मंत्री बंगले में लाकर पैसा छोड़ा जाता था। यह रकम प्रति माह डेढ़ करोड़ थी। पैसा रिसीव करने के बाद वॉट्सऐप कॉल से होती थी पुष्टि वहीं ED की चार्जशीट के अनुसार जो भी व्यक्ति ओएसडी जयंत देवांगन के पास पैसा लेकर जाता था। वो पैसों के बंडल जांच कराने के बाद वॉट्सऐप कॉल के माध्यम से उसका कंफर्मेशन देता था। ये कंफर्मेशन शेख सकात (कवासी लखमा के सुरक्षा अधिकारी) के मोबाइल के माध्यम से होती थी। इसकी पुष्टि खुद लखमा करते थे। हवाई यात्रा में खर्च किए 48 लाख से ज्यादा EOW की चार्जशीट के अनुसार कवासी लखमा द्वारा उनके कार्यकर्ताओं, संबंधियों के हवाई यात्रा, होटल और वाहन बुकिंग की व्यवस्था की जाती थी। इस राशि का भुगतान नगद में दिया जाता था। 2023 में 41 लाख 94 हजार 211 बुकिंग की गई, जिसमें 28 लाख 30 हजार 140 रुपए का नगद भुगतान किया गया। शराब बेचने के लिए प्रदेश के 15 जिले शॉर्ट लिस्टेड किए गए शराब बेचने के लिए प्रदेश के 15 जिलों को चुना गया। शराब खपाने का रिकॉर्ड सरकारी कागजों में ना चढ़ाने की नसीहत दुकान संचालकों को दी गई। डुप्लीकेट होलोग्राम वाली शराब बिना शुल्क अदा किए दुकानों तक पहुंचाई गई। इसकी एमआरपी सिंडिकेट के सदस्यों ने शुरुआत में प्रति पेटी 2880 रुपए रखी थी। इनकी खपत शुरू हुई, तो सिंडिकेट के सदस्यों ने इसकी कीमत 3840 रुपए कर दी। मिलीभगत से 40 लाख पेटी से अधिकारी शराब बेची डिस्टलरी मालिकों को शराब सप्लाई करने पर शुरुआत में प्रति पेटी 560 रुपए दिया जाता था, जो बाद में 600 रुपए कर दिया गया था। ACB को जांच के दौरान साक्ष्य मिला है कि सिंडिकेट के सदस्यों ने दुकान कर्मचारियों और आबकारी अधिकारियों की मिलीभगत से 40 लाख पेटी से अधिकारी शराब बेची है। शराब घोटाला मामले में ये गिरफ्तार 2024 में आईटीएस अधिकारी अरुणपति त्रिपाठी, बीएसपी कर्मी अरविंद सिंह, कारोबारी अनवर ढेबर, त्रिलोक सिंह ढिल्लन, अनुराग द्विवेदी, अमित सिंह, दीपक दुआरी, दिलीप पांडेय, रिटायर आईएएस अनिल टुटेजा, सुनील दत्त। 2025 में तत्कालीन आबकारी मंत्री कवासी लखमा और कारोबारी विजय भाटिया को गिरफ्तार किया गया है। जानिए क्या है छत्तीसगढ़ का शराब घोटाला छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में ED जांच कर रही है। ED ने ACB में FIR दर्ज कराई है। दर्ज FIR में 2 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के घोटाले की बात कही गई है। ED ने अपनी जांच में पाया कि तत्कालीन भूपेश सरकार के कार्यकाल में IAS अफसर अनिल टुटेजा, आबकारी विभाग के एमडी AP त्रिपाठी और कारोबारी अनवर ढेबर के सिंडिकेट के जरिए घोटाले को अंजाम दिया गया था। A, B और C कैटेगरी में बांटकर किया गया घोटाला A: डिस्टलरी संचालकों से कमीशन 2019 में डिस्टलरी संचालकों से प्रति पेटी 75 रुपए और बाद के सालों में 100 रुपए कमीशन लिया जाता था। कमीशन को देने में डिस्टलरी संचालकों को नुकसान ना हो, इसलिए नए टेंडर में शराब की कीमतों को बढ़ाया गया। साथ ही फर्म में सामान खरीदी करने के लिए ओवर बिलिंग करने की राहत दी गई। B: नकली होलोग्राम वाली शराब को सरकारी दुकानों से बिकवाना डिस्टलरी मालिक से ज्यादा शराब बनवाई। नकली होलोग्राम लगाकर सरकारी दुकानों से बिक्री करवाई गई। नकली होलोग्राम मिलने में आसानी हो, इसलिए एपी त्रिपाठी के माध्यम से होलोग्राम सप्लायर विधु गुप्ता को तैयार किया गया। होलोग्राम के साथ ही शराब की खाली बोतल की जरूरत थी। खाली बोतल डिस्टलरी पहुंचाने की जिम्मेदारी अरविंद सिंह और उसके भतीजे अमित सिंह को दी गई। खाली बोतल पहुंचाने के अलावा अरविंद सिंह और अमित सिंह को नकली होलोग्राम वाली शराब के परिवहन की जिम्मेदारी भी मिली। सिंडिकेट में दुकान में काम करने वाले और आबकारी अधिकारियों को शामिल करने की जिम्मेदारी एपी त्रिपाठी को सिंडिकेट के कोर ग्रुप के सदस्यों ने दी।
