छत्तीसगढ़ में पिछले चार दिनों से लगभग सभी जिलों में भारी बारिश हो रही है। रायपुर में मंगलवार सुबह से ही तेज पानी बरस रहा है। जिससे कई इलाकों में पानी भर गया है। सड़कों पर नदियां बह रही हैं। वहीं सरगुजा संभाग में भी मूसलाधार बारिश से नदी-नाले उफान पर हैं। इस बीच मौसम विभाग ने आज (मंगलवार) राजनांदगांव, दुर्ग, बालोद और कांकेर में अति भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है। वहीं रायपुर, धमतरी, कोरबा, महासमुंद, रायगढ़, मुंगेली सहित 15 जिलों में भारी बारिश का ऑरेंज अलर्ट है। बीजापुर, कोंडागांव और बस्तर में भी भारी बारिश का यलो अलर्ट है। सरगुजा संभाग के छह जिलों में गरज-चमक के साथ बिजली गिर सकती है। इससे पहले सोमवार को लगातार बारिश से बिलासपुर में कई इलाके डूब गए। सड़कों पर नालियों का पानी आ गया। बारिश की ये तस्वीरें देखिए राजनांदगांव में सामान्य से 60% कम बारिश
राजनांदगांव जिले में इस मानसून सीजन में सबसे कम बारिश दर्ज की गई है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 1 जून से अब तक जिले में मात्र 94 मिमी बारिश हुई है। यह औसत से 60% कम है। जबकि अब तक औसत 214 मिमी बारिश हो जानी थी। खरीफ फसल की बुवाई इस कम बारिश से प्रभावित हुई है। जिले में अभी तक केवल 55% क्षेत्र में ही धान की बुवाई हो पाई है। हालांकि, रविवार रात से सोमवार तक हुई रिमझिम बारिश ने किसानों को कुछ राहत दी है। इससे बुवाई की गति में तेजी आई है। बलरामपुर में तेज बारिश से पुल बहा बलरामपुर में चार दिन पहले गेरांव स्थित बांस झर्रा में पुल बहने से बड़मार क्षेत्र का संपर्क कई गांव से कट गया । मार्ग पर आना जाना बंद हो गया है। इलाके में लगातार बारिश से नदी-नाले उफान पर हैं। छत्तीसगढ़ में बारिश की बात करें तो 1 जून से अब तक 243.4 मिमी औसत बारिश रिकॉर्ड की गई है। बीजापुर जिले में सबसे ज्यादा 382 मिमी बारिश और बेमेतरा जिले में सबसे कम 81.5 मिमी सबसे कम पानी गिरा है। आने वाले समय में मूसलाधार बारिश की उम्मीद है। लंबा रह सकता है मानसून मानसून के केरल पहुंचने की सामान्य तारीख 1 जून है। इस साल 8 दिन पहले यानी 24 मई को ही केरल पहुंच गया था। मानसून के लौटने की सामान्य तारीख 15 अक्टूबर है। अगर इस साल अपने नियमित समय पर ही लौटता है तो मानसून की अवधि 145 दिन रहेगी। इस बीच मानसून ब्रेक की स्थिति ना हो तो जल्दी आने का फायदा मिलता सकता है। जानिए इसलिए गिरती है बिजली दरअसल, आसमान में विपरीत एनर्जी के बादल हवा से उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। ये विपरीत दिशा में जाते हुए आपस में टकराते हैं। इससे होने वाले घर्षण से बिजली पैदा होती है और वह धरती पर गिरती है। आकाशीय बिजली पृथ्वी पर पहुंचने के बाद ऐसे माध्यम को तलाशती है जहां से वह गुजर सके। अगर यह आकाशीय बिजली, बिजली के खंभों के संपर्क में आती है तो वह उसके लिए कंडक्टर (संचालक) का काम करता है, लेकिन उस समय कोई व्यक्ति इसकी परिधि में आ जाता है तो वह उस चार्ज के लिए सबसे बढ़िया कंडक्टर का काम करता है। जयपुर में आमेर महल के वॉच टावर पर हुए हादसे में भी कुछ ऐसा ही हुआ। आकाशीय बिजली से जुड़े कुछ तथ्य जो आपके लिए जानना जरूरी आकाशीय बिजली से जुड़े मिथ
