बीते दिनों एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें एक व्यक्ति जमीन पर कम्प्यूटर और फाइलें लगाकर काम कर रहा है। ये शख्स आंध्र प्रदेश की SVV यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ रवि वर्मा हैं। डॉ वर्मा दलित समाज से आते हैं। आरोप है कि यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ने उनकी कुर्सी हटा दी, जिसके विरोध में वे जमीन पर ही बैठकर काम करने लगे। 20 साल से बतौर कॉन्ट्रैक्ट असिस्टेंट प्रोफेसर पढ़ा रहे ये मामला आंध्र की श्री वेंकटेश्वर वेटेरनरी यूनिवर्सिटी के डेयरी टेक्नोलॉजी कॉलेज का है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, डॉ वर्मा साल 2005 में बतौर कॉन्ट्रैक्ट असिस्टेंट प्रोफेसर अपॉइंट हुए थे। उनके जिम्मे भी किसी रेगुलर असिस्टेंट प्रोफेसर जितनी ही जिम्मेदारी थी, मगर कॉन्ट्रैक्ट पर होने के चलते उन्हें वेतन बेहद कम मिलता रहा। 5 साल तक वे इसी तरह काम करते रहे। हर 6 महीनों पर उनका कॉन्ट्रैक्ट 2-3 दिन का गैप लेकर रिन्यू किया जाता रहा। मगर वो कॉन्ट्रैक्ट पर ही रहे। साल 2010 में UGC ने नियम लागू किया कि ‘समान काम के लिए समान वेतन’ दिया जाना चाहिए। मगर इस निर्देश के बाद भी डॉ वर्मा के वेतन में बदलाव नहीं हुआ। ऐसे में उन्होंने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में शिकायत की। यूनिवर्सिटी ने कोर्ट में बताया अयोग्य 2014 में, हाईकोर्ट ने डॉ वर्मा के पक्ष में फैसला सुनाया और यूनिवर्सिटी को उन्हें समान वेतन देने का निर्देश दिया। मगर, यूनिवर्सिटी ने कहा कि डॉ वर्मा समान वेतन पाने के लिए योग्य नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने UGC NET परीक्षा क्वालिफाई नहीं की है, और उनका चयन सेलेक्शन कमेटी ने नहीं किया है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, SVV यूनिवर्सिटी ने साल 2012- 2013 में 150 से ज्यादा फैकल्टी की भर्ती की है जो NET क्वालिफाइड नहीं हैं, और सभी फुल सैलरी और प्रमोशन पा रहे हैं। मगर डॉ वर्मा, सुप्रीम कोर्ट के ‘समान काम के लिए समान वेतन’ (2016) फैसले और आंध्र हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद समान वेतन नहीं पा सके। अक्टूबर 2024 में डॉ वर्मा ने यूनिवर्सिटी के VC से इस पूरे मामले की शिकायत की। उन्हें कार्रवाई का आश्वासन भी मिला, मगर अभी तक फाइल अटकी हुई है। ‘डिपार्टमेंट से कुर्सी गायब’ ताजा मामला डिपार्टमेंट से कुर्सी गायब होने का है। दरअसल, विभाग में नई कुर्सियां आई थीं जिनमें से एक डॉ वर्मा को भी मिली थी। मगर 19 जून को जब वो लीव पर थे वो एसोसिएट डीन डॉ रेड्डी ने उनकी कुर्सी ये कहकर हटवा दी कि वो किसी और डिपार्टमेंट की थी। अगले दिन उसकी जगह पर एक विजिटिंग चेयर रख दी गई। डॉ वर्मा ने इसे अपमानजनक और भेदभावपूर्ण बताते हुए जमीन पर ही अपना सामान रख लिया। हालांकि, मीडिया रिर्पोट्स के अनुसार वीसी के दखल के बाद मामला सुलझा लिया गया है। कुल फैकल्टी मेंबर्स का कहना था कि कुर्सी हटाए जाना एक सोचा-समझा कदम था। डॉ वर्मा के यूनिवर्सिटी के खिलाफ 20 साल से जारी संघर्ष के चलते उन्हें ये झेलना पड़ा है। राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी डॉ वर्मा ने अब अपने 2 दशक से लंबे संघर्ष की शिकायत के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी चिट्ठी लिखी है। उन्होंने मांग की है कि उन्हें कोर्ट के आदेश के चलते इतने समय से रुका हुआ एरियर वेतन भी मिलना चाहिए। उन्होंने चिट्ठी में लिखा है कि अब इस लड़ाई को जारी रखने के लिए उनके पास पैसे भी नहीं बचे हैं…। ———————- ये खबरें भी पढ़ें… मिड-डे मील के लिए दलित महिला की नियुक्ति: 22 में से 21 बच्चों ने स्कूल से नाम कटवाया, प्रशासन ने कहा छुआछूत करने वालों पर कार्रवाई होगी कर्नाटक के चमाराजनगर के एक सरकारी स्कूल के कुल 21 छात्रों ने अपना दाखिला इसलिए वापस ले लिया क्योंकि मिड-डे मील बनाने के लिए एक दलित महिला को नियुक्त किया गया था। जिला प्रशासन ने 8 बच्चों के पेरेंट्स को स्कूल में वापस एडमिशन कराने के लिए फिलहाल मना लिया है। आगे की जांच की जा रही है। पूरी खबर पढ़ें…
