छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय शनिवार को दिल्ली से रायपुर लौटे। दिल्ली में सीएम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। बीते 13 दिनों में 2 बार PM मोदी से मुख्यमंत्री साय मिले हैं। दोनों बार बस्तर की बात ज्यादा हुई है। इस बार भी CM और PM के बीच बातचीत बस्तर पर ही आधारित रही। एक फाइल और खास तोहफा लेकर मुख्यमंत्री दिल्ली गए थे। फाइल में बस्तर में चल रहे नक्सल ऑपरेशन की जानकारी थी। बोधघाट प्रोजेक्ट को लेकर भी कुछ प्वांइट राज्य सरकार ने भारत के प्रधानमंत्री के सामने रखे। मुख्यमंत्री ने मांग रखी है कि कई सालों से अटके इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में केंद्र मदद करे। PM ने भी सहमति दी है। खास तोहफे के तौर पर बस्तर के बेलमेटल से तैयार होने वाला नंदी लेकर मुख्यमंत्री दिल्ली गए थे, इसे PM नरेंद्र मोदी को दिया। प्रदेश की पहचान बन चुके इस तोहफे में इस बार कुछ अलग दिखा। नंदी के शरीर पर मुख भगवान गणेश का था, सींगों की जगह कलाकारी ऐसी थी कि ओम की आकृति नजर आ रही थी। अरे वाह कहकर PM नरेंद्र मोदी ने इसे स्वीकार किया। जानिए क्या हुआ मीटिंग में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खुद बताया- मैंने प्रधानमंत्री से बोधघाट सिंचाई परियोजना और इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना के संबंध में विस्तार से चर्चा की और उन्हें बताया कि बस्तर संभाग के विकास की दृष्टि से इन परियोजनाओं की स्वीकृति अत्यंत महत्वपूर्ण है। मैंने प्रधानमंत्री को बताया कि बस्तर लंबे समय तक नक्सल प्रभावित रहा है और इसलिए सिंचाई क्षमता बढ़ाने के लिए यहां बहुत काम नहीं हो पाया है। बस्तर में कुल बोए गए क्षेत्र 8.15 लाख हेक्टेयर में से केवल 1.36 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही सिंचाई सुविधाएं विकसित हो पाई है।
CM ने कहा- दोनों परियोजनाओं की कुल लागत 49 हजार करोड़ रुपए है। प्रस्तावित बोधघाट सिंचाई परियोजना से दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिले के 269 गांव लाभान्वित होंगे, इससे खरीफ और रबी सीजन में 3,78,475 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी, परियोजना से 125 मेगावाट बिजली उत्पादित होगी। इससे 49 मि.घ.मी. पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित होगी और 4824 मीट्रिक टन सालाना मछली उत्पादन होगा। इससे अतिरिक्त रोजगार का सृजन होगा। इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना द्वारा इंद्रावती नदी का लगभग 100 टी.एम.सी. (2830 मि.घ.मी.) जल महानदी कछार में स्थानांतरित करने की योजना है। जिससे कांकेर जिले की भी 50 हजार हेक्टेयर भूमि में सिंचाई सहित कुल 3 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। दोनों परियोजनाओं से कुल 7 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी। बोधघाट बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना और इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना के रूप में क्रियान्वित किया जाना प्रस्तावित है। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इसे गंभीरता से सुना और इस पर विचार करने की बात कही है। इससे हमारा यह विश्वास प्रबल हुआ है कि बस्तर के सर्वांगीण विकास का हमारा उद्देश्य सफल होगा। दावा- बस्तर को बदल देगा ये प्रोजेक्ट बोधघाट परियोजना से बस्तर में बड़े बदलाव आने वाले हैं। दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर में सिंचाई का रकबा प्रत्येक जिले में 60 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाएगा। राज्य के सिंचाई रकबे में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। परियोजना से पशुपालन, मछलीपालन, पर्यटन और परिवहन में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। बस्तर अंचल को कृषि से 4269 करोड़ की आय के साथ-साथ पशुपालन, मछलीपालन, औद्योगिक क्षेत्र को दिए जाए जाने पानी, पेयजल, पर्यटन से समेत अन्य स्त्रोतों से 6223 करोड़ की सालाना आय होने का अनुमान है। बोधघाट परियोजना 40 साल से ज्यादा पुरानी इस परियोजना को पनबिजली उत्पादन के लिए 1979 में पर्यावरणीय मंजूरी मिली थी। उस समय यह क्षेत्र अविभाजित मध्य प्रदेश के अंतर्गत आता था। यह कार्य इसलिए शुरू नहीं हो सका क्योंकि तत्कालीन सरकार का मानना था कि यह परियोजना बस्तर के आदिवासी बहुल लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है। 20 वर्षों की निष्क्रियता के बाद, इस परियोजना को सिंचाई परियोजना में संशोधित कर दिया गया है, जिसका उद्देश्य बस्तर के हजारों गांवों को पानी उपलब्ध कराना है। बोधघाट सिंचाई परियोजना का लक्ष्य बस्तर की 72% कृषि योग्य भूमि को कवर करना है, जिससे कृषि गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा इस परियोजना की अनुमानित लागत 22,000 करोड़ रुपए है। इससे 300 मेगावाट (MW) जल विद्युत उत्पादन होने की संभावना है। इस परियोजना के लिए दंतेवाड़ा के बारसूर गांव के पास एक बांध का निर्माण किया जाना है, जिससे 3,66,580 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई में मदद मिलेगी। दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिले माओवाद प्रभावित क्षेत्र हैं। वाप्कोस लिमिटेड को सर्वेक्षण, अनुसंधान और परियोजना से संबंधित मंत्रालयों से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। रुकावट की वजह पर्यावरणविदों को छत्तीसगढ़ सरकार के सर्वेक्षण और इंद्रावती नदी पर बोधघाट परियोजना के निर्माण पर आपत्ति है। कार्यकर्ता आदिवासी समुदायों के विस्थापन के मुद्दे उठा रहे हैं। विचार यह है कि आदिवासी लोगों को अपनी जमीन न खोनी पड़े। इसके अलावा 5010 हेक्टेयर निजी भूमि और 3068 हेक्टेयर सरकारी भूमि भी जलमग्न हो जाएगी। वनों को नुकसान उठाना पड़ेगा। इस परियोजना से इंद्रावती टाइगर रिजर्व, भैरमगढ़ जंगली भैंसा अभयारण्य और भारतीय जंगली भैंसों के अन्य आसपास के आवासों की पारिस्थितिकी भी प्रभावित होगी। मछलियां भी प्रभावित होती हैं, क्योंकि बांध मछलियों को भोजन और प्रजनन स्थलों के बीच प्राकृतिक मार्गों पर आगे बढ़ने से रोकते हैं। आज क्या स्थिति है बोधघाट परियोजना को करीब 45 साल पूरे हो चुके हैं। केंद्र सरकार ने जनवरी 1979 में बोधघाट परियोजना और आंध्रप्रदेश की पोलावरम परियोजना को मंजूरी दी थी। आज पोलावरम का काम 75 प्रतिशत पूरा हो चुका है, जबकि बोधघाट की नींव में एक पत्थर तक नहीं रखा गया है। केंद्रीय एजेंसी वाप्कोस ने सर्वे शुरू किया, जो पूरा हो गया। राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है। उधर, केंद्र सरकार ने हाइड्रोलॉजी रिपोर्ट को ओके कर दिया है। अब डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) पर काम जारी है। अब प्रधानमंत्री से CM की इस प्रोजेक्ट को लेकर हुई खास मीटिंग को नई शुरुआत माना जा सकता है।
PM और CM के बीच बस्तर को लेकर ये बातें हुईं मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को बताया कि अब बस्तर का चेहरा बदल रहा है, जो कभी बंदूक और बारूदी सुरंगों के लिए जाना जाता था, आज वहां मोबाइल टावर खड़े हो रहे हैं। साय ने बताया कि सरकार ने डेढ़ साल में 64 नए फॉरवर्ड सुरक्षा कैंपों की स्थापना की है। सरकार ने अब तक कुल 671 मोबाइल टावर चालू कर दिए हैं, जिनमें से 365 टावरों में 4G सेवा उपलब्ध है। यह न सिर्फ तकनीकी बदलाव है, बल्कि यह संकेत है कि अब आदिवासी क्षेत्रों में संचार क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अब बस्तर में सिर्फ मोबाइल टावर नहीं लग रहे हैं, बल्कि ये टावर इस बात का सबूत हैं कि वहां के बच्चे और युवा भी अब डिजिटल दुनिया से जुड़ रहे हैं। सुरक्षा कैंपों के इर्द-गिर्द बसते गांवों में अब बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंच रही है। नियद नेल्लानार योजना के तहत चिन्हित 146 ग्रामों में 18 सामुदायिक सेवाएं और 25 तरह की सरकारी योजनाएं एक साथ क्रियान्वित की जा रही हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने प्रधानमंत्री को बताया कि छत्तीसगढ़ में अब बारिश के दिन कम हो गए हैं। पहले जहां लगभग 100 दिन बारिश होती थी, अब सिर्फ 65 दिन ही होती है। तकनीक के तहत गांव-गांव में पानी बचाने के नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। इस काम में आधुनिक तकनीक जैसे GIS मैपिंग और ‘जलदूत’ नाम का मोबाइल ऐप इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे यह पता चलता है कि कहां कितनी जरूरत है। नालंदा परिसर की भी दी जानकारी मुख्यमंत्री साय ने प्रधानमंत्री को नालंदा परिसर की जानकारी भी दी, जो देश की पहली 24×7 हाईब्रिड सार्वजनिक लाइब्रेरी है। 18 करोड़ की लागत से बनी इस सुविधा में ई-लाइब्रेरी, यूथ टॉवर, हेल्थ ज़ोन और सौर ऊर्जा आधारित व्यवस्था है। अब तक 11,000 से अधिक छात्र लाभांवित हो चुके हैं, जिनमें 300 से अधिक छात्र यूपीएससी और सीजी पीएससी में सफलता पाई है। साथ ही, मुख्यमंत्री ने ‘प्रयास’ मॉडल की भी जानकारी दी, जिसमें वंचित और आदिवासी बच्चों को आईआईटी, नीट, क्लैट जैसी परीक्षाओं की तैयारी कराई जाती है। अब तक 1508 छात्र चुनिंदा राष्ट्रीय संस्थानों में प्रवेश पा चुके हैं।