पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमों के ईद मनाने पर पाबंदी:5 लाख रुपए जुर्माने की धमकी; जबरदस्ती हलफनामा भरवाया जा रहा

पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांत में अहमदिया मुस्लिमों को ईद मनाने से रोकने के लिए जबरदस्ती हलफनामें भरवाए जा रहे हैं। पंजाब में तो अहमदियों को चेतावनी दी गई है कि अगर उन्होंने ईद मनाई तो 5 लाख रुपए जुर्माना देना होगा। पंजाब और सिंध के कई इलाकों में को अहमदिया समुदाय पर घर के अंदर धार्मिक रीति-रिवाजों और कुर्बानी न करने का भी दबाव बनाया जा रहा है। इस साल 7 जून को ईद मनाई जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई जगहों पर पुलिस अहमदिया लोगों को हिरासत में ले रही है और उन्हें धमकी देकर या परेशान करके हलफनामे पर साइन कराए जा रहे हैं। पाकिस्तान में 20 लाख अहमदिया रहते हैं पाकिस्तान में हमेशा से अहमदिया समुदाय सरकार और कट्टरपंथियों के निशाने पर रहा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल की जून 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में कम से कम 36 अहमदिया लोगों को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया था, ताकि उन्हें ईद की कुर्बानी करने से रोका जा सके। पाकिस्तान में करीब 20 लाख की आबादी वाला अहमदिया समुदाय उत्पीड़न का शिकार रहा है। 1974 के संवैधानिक संशोधन के तहत उन्हें मुस्लिम नहीं माना जाता। उन्हें कुरान पढ़ने, नमाज अदा करने या खुले तौर पर धार्मिक रीति-रिवाज करने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) जैसे संगठन उन पर हमला करते हैं। लाहौर बार एसोसिएशन ने अहमदियों के खिलाफ IG को लेटर लिखा लाहौर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने पंजाब के IG को पत्र लिखकर अहमदिया समुदाय पर इस्लामी रीति-रिवाजों के पालन करने आरोप लगाया और इसे कानून का उल्लंघन बताया। बार एसोसिएशन अध्यक्ष मलिक आसिफ ने कहा कि सिर्फ मुसलमानों को ही कुर्बानी करने का अधिकार है। अहमदिया समुदाय का इन रीति-रिवाजों में हिस्सा लेते हैं तो इससे मुस्लिम बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। इससे हिंसा का खतरा बढ़ जाएगा। अहमदिया कौन हैं? साल 1889 में पंजाब के लुधियाना जिले के कादियान गांव में मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया समुदाय की शुरुआत की थी। उन्होंने एक बैठक बुलाकर खुद को खलीफा घोषित कर दिया। उन्होंने शांति, प्रेम, न्याय और जीवन की पवित्रता जैसे शिक्षाओं पर जोर दिया। इसके बाद यह माना गया कि मिर्जा गुलाम अहमद ने इस्लाम के अंदर पुनरुत्थान की शुरुआत की है। मिर्जा गुलाम अहमद कादियान गांव से थे, ऐसे में अहमदिया को कादियानी भी कहा जाने लगा। अहमदियाओं की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक अल्लाह ने मिर्जा गुलाम अहमद को धार्मिक युद्धों और कट्टर सोच को समाप्त करके शांति बहाल करने के लिए धरती पर भेजा था। अहमदिया समुदाय के लोगों को लिबरल माना जाता है। इसकी वजह यह है कि मिर्जा गुलाम अहमद दूसरे धर्म के संस्थापकों और संतों जैसे ईरानी प्रोफेट जोरोस्टर, अब्राहम, मूसा, जीसस, कृष्ण, बुद्ध, कन्फ्यूशियस, लाओ त्जु और गुरु नानक की शिक्षाओं को पढ़ने पर जोर देते थे। उनका मानना था कि इन शिक्षाओं के जरिए ही कोई इंसान सच्चा मुसलमान बन सकता है। 1974 से ही पाकिस्तान में अहमदिया को मुस्लिम नहीं माना जाता है साल 1974 की बात है। पाकिस्तान में दंगे भड़क गए। दंगे में अहमदिया समुदाय के करीब 27 लोगों की हत्या हो गई थी। इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया मुसलमानों को ‘नॉन-मुस्लिम माइनॉरिटी’ बता दिया था। उस समय इसका अहमदिया समुदाय के लोगों ने खूब विरोध किया था। हालांकि, बाद में पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 298 के जरिए अहमदिया को मुस्लिम कहना जुर्म करार दिया गया। अगर कोई अहमदिया खुद को मुस्लिम बताता है तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है। 2002 में अहमदिया लोगों के लिए पाकिस्तान सरकार ने अलग वोटर लिस्ट प्रिंट करवाई, जिसमें उन्हें गैर-मुस्लिम माना गया था। हाल ये है कि पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों का कब्रिस्तान से लेकर मस्जिद तक अलग है। 51 साल पहले मक्का में अहमदिया को गैर-मुस्लिम बताया गया सऊदी अरब अहमदिया को मुस्लिम नहीं मानता है। 2018 में सऊदी अरब ने अहमदिया के हज करने पर पाबंदी लगा दी। अहमदिया हज के लिए जाते हैं तो उन्हें हिरासत में लेकर वापस उनके देश भेजा जाता है। आज से करीब 51 साल पहले 1974 में मक्का में इस्लामिक फिक्ह काउंसिल ने एक फतवा जारी किया था, जिसमें अहमदिया संप्रदाय और उसके अनुयायियों को काफिर और गैर-मुस्लिम करार दिया गया था। इसके बाद अलग-अलग समय पर मुस्लिम संगठनों की कई ऐसी बैठकें हुई। कई मुस्लिम देशों में वैचारिक मतभेद की वजह से अहमदिया मुस्लिमों की गिरफ्तारी तक हो जाती है। इसी वजह से कई जगहों पर इस समुदाय से जुड़े लोग अपनी पहचान तक बताने या सार्वजनिक करने से बचते हैं। सरकारी कागजों में भी ये गलत जानकारी देने लगते हैं।

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