छत्तीसगढ़ में केसेस का पहाड़…10 लाख आबादी पर 17 जज:जेलों की दयनीय स्थिति, क्षमता से 45% ज्यादा कैदी, पुलिस विभाग में 27% पोस्ट खाली

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) ने देश के 18 बड़े राज्य और केंद्र शासित छोटे राज्यों की रैंकिंग की। इसमें पुलिस व्यवस्था, जेल, न्यायपालिका और कानूनी सहायता को लेकर रिपोर्ट जारी की है। छत्तीसगढ़ को ओवरऑल रैंकिंग में टॉप 10 में 6वां स्थान मिला है, जबकि पश्चिम बंगाल की हालत सबसे दयनीय है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 के मुताबिक पुलिस व्यवस्था में राज्य को चौथा, जेल 13वां, न्यायपालिका को 8वां और कानूनी सहायता में 7वां स्थान मिला है। इसमें जेल व्यवस्था और न्यायपालिका खराब स्थिति में है। न्यायालयों में जजों की कमी है। जेलों में कैदियों की भीड़ बढ़ गई, लेकिन व्यवस्थाएं नहीं सुधर रही। छत्तीसगढ़ में प्रति 10 लाख की आबादी पर मात्र 17 जज हैं, जबकि 50 जजों की जरूरत है। इससे जजों पर केसों का पहाड़ बनते जा रहा है। वहीं जेलों की बात करें तो सेंट्रल और जिला जेलों की स्थिति खराब है। यहां क्षमता से 45% से अधिक भरी हुई हैं। वहीं पुलिसिंग में महिलाओं संख्या बहुत कम है। इस रिपोर्ट में विस्तार से पढ़िए पुलिस व्यवस्था, जेल, न्यायपालिका और कानूनी सहायता की स्थिति… न्याय प्रणाली में बड़े पैमाने पर रिक्तियां 2025 तक, उच्च न्यायालयों में 27% से लेकर जिला न्यायाधीशों के बीच 30% तक रिक्तियां हैं। उच्च न्यायालय में लगभग हर तीन में से एक मामला (32%) 2024 में 5-10 वर्षों से लंबित था। 2022 में यह हिस्सेदारी 27% थी। जिला न्यायालय में 10% मामले 5-10 वर्षों से लंबित रहे। राज्य के लगभग आधे जिला न्यायालय के न्यायाधीश महिलाएं हैं, लेकिन 2025 में उच्च न्यायालय में उनकी संख्या केवल 6% है। छत्तीसगढ़ ने 8% के साथ देश में पुलिस में महिलाओं की सबसे कम हिस्सेदारी में से एक दर्ज की। छत्तीसगढ़ की जेलों की स्थिति दयनीय छत्तीसगढ़ की जेलें अपनी क्षमता से 45% से अधिक भरी हुई हैं। 36% के उच्च समग्र कर्मचारी की कमी के साथ चल रही हैं। जेल कर्मचारियों के भीतर, जेल अधिकारियों में रिक्तियां सबसे अधिक 66% हैं, जो देश में सबसे अधिक में से एक है। इसके चिकित्सा कर्मचारियों, डॉक्टरों और सुधारात्मक कर्मचारियों में 50% से अधिक की कमी थी और तीन में से एक गार्डिंग स्टाफ भी गायब था। IJR ने अपनी रिपोर्ट में ओवरऑल किसे कितनी रैंकिंग दी ? छत्तीसगढ़ में ओवरऑल पुलिस व्यवस्था, जेल, न्यायपालिका और कानूनी सहायता की बात करें तो छत्तीसगढ़ में जेलों की स्थिति खराब है, जबकि पुलिसिंग व्यवस्था अच्छी है। न्यायपालिका भी ठीक स्थिति में है। वहीं कानूनी सहायता में भी छत्तीसगढ़ बेहतर स्थिति में है। पुलिस विभाग में 33 प्रतिशत महिलाओं को लाने में 50 साल लगेंगे छत्तीसगढ़ पुलिस में 33% महिलाओं को लाने में अभी 50 लग सकते हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ ने 2022 के मुकाबले ग्रोथ किया है। अभी छत्तीसगढ़ में करीब 7.6 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी हैं, जबकि 9.3 प्रतिशत पुलिस अधिकारी हैं। वहीं पुलिस विभाग में भी अभी करीब 30 प्रतिशत रिक्त पद हैं। छत्तीसगढ़ में पुलिस स्टेशन की संख्या और दूरी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पुलिस स्टेशन की स्थिति की बात करें तो पुलिस मशीनरी अधिकतर शहर केंद्रित होती है। 2017 और 2023 के बीच, ग्राामीण पुलिस स्टेशनों की संख्या में कमी आई, जबकि शहरी पुलिस स्टेशनों में वृद्धि हुुई। वहीं छत्तीसगढ़ की बात करें तो 2023 के मुताबिक 99 हजार 817 पुलिस स्टेशन हैं, जबकि 61 हजार 958 थाने हैं। वहीं अगर दूरी की बात करें तो शहरी क्षेत्र में प्रति 39 वर्ग किलोमीटर का दायरा है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो 372 वर्ग किलोमीटर का दायरा है। छत्तीसगढ़ में जेलों की स्थिति बहुत खराब, कैदियों की बढ़ी भीड़ देश के 18 राज्यों में छत्तीसगढ़ के जेलों की स्थिति बहुत खराब है। 18 में 13वें स्थान पर है। 4.54 रैंकिंग मिली है। वहीं जेल ऑक्यूपेंसी की बात करें तो दिसंबर 2012 में 253% और दिसंबर 2022 में 145 % है। जेलों में कैदियों की भीड़ बढ़ गई है। 10 साल में 14 हजार 143 कैदी बढ़े 10 साल में छत्तीसगढ़ की जेलों की कुल क्षमता में 141% की बढ़ोतरी हुई है। 5 हजार 850 कैदियों से बढ़कर 14 हजार 143 कैदियों की बढ़ोतरी हुई है। छत्तीसगढ़ में 1-3 साल से ज्यादा समय तक रहने वाले विचाराधीन कैदियों की बात करें तो इनकी संख्या 26.0 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ में 6 कैदियों पर एक 6 काडर छत्तीसगढ़ में 6 कैदियों पर एक 6 काडर की नियुक्ति की गई है, जिसमें 14.7 है। ये तय सीमा से कम हैं। वहीं मेडिकल ऑफिसर की बात करें तो 300 कैदियों पर एक मेडिकल ऑफिसर की नियुक्ति होती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में 1 हजार 76 कैदी पर एक मेडिकल ऑफिसर है। छत्तीसगढ़ में कैदियों पर कितना खर्च ? छत्तीसगढ़ में प्रत्येक कैदी पर खर्च की बात करें तो 100 रुपए प्रति कैदी खर्च हो रहा है, ये आंकड़े 2021-22 के हैं, जबकि 2023-24 के मुताबिक 105 रुपए खर्च हो रहे हैं। इसमें खाना, दवा, शिक्षा और ट्रेनिंग भी शामिल है। सबसे ज्यादा आंध्रप्रदेश 733 रुपए और सबसे कम महाराष्ट्र 47 रुपए खर्च करता है। छत्तीसगढ़ में जजों की स्थिति और वैकेंसी छत्तीसगढ़ SC और ST के लिए अपने कोटे को भरने मेंं असफल रहा है, जबकि OBC के लिए आरक्षित सीटों को भरने में कुछ हद तक बेहतर प्रदर्शन रहा। छत्तीसगढ़ में 2022-25 तक जाति के अनुसार ST-SC और OBC जजों की संख्या में कमी आई है। 2022 में तीनों कटेगरी के जजों की बेहतर स्थिति थी, लेकिन IJR की रैंकिंग में छत्तीसगढ़ में कमी रिकॉर्ड की गई है। छत्तीसगढ़ में प्रति 10 लाख की आबादी पर मात्र 17 जज 1987 मेंं विधि आयोग से निर्धारित मानक के अनुसार, प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 50 जज होने चाहिए, लेकिन वास्तविकता में छत्तीसगढ़ में 17 ही जज हैं। वहीं हाईकोर्ट में अभी 27 प्रतिशत जजों के पोस्ट खाली हैं, जबकि छोटे अदालतों में करीब 30 प्रतिशत जजों की जरूरत है। अभी 29 प्रतिशत केस पेंडिंग हैं। छत्तीसगढ़ में 43 परसेंट ही महिलाएं, केस भी पेंडिंग महिला जजों की संख्या 43.7 परसेंट है। इसमें 92 SC महिला जज हैं। ST की 83 महिलाएं हैं, जबकि OBC की 138 महिला जज हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में 2025 में छोटे न्यायालयों में 28.3 परसेंट केस पेंडिंग हैं, जबकि हाईकोर्ट में 113 परसेंट केस पेंडिंग हैं। न्यायपालिका में छत्तीसगढ़ की स्थिति खराब पिछले तीन सालों में केवल 11 बड़े और मध्यम आकार के राज्य ही अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्तियों को भरने या बनाए रखने में कामयाब रहे हैं। इसके विपरीत, छत्तीसगढ़, झारखंड और पश्चिम बंगाल में इसी अवधि के दौरान रिक्तियों की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है, जबकि मुकदमों का बोझ लगातार बढ़ रहा है। छत्तीसगढ़ में हालात इतने खराब हो गए हैं कि 2022 में 8.9 परसेंट था, जो अब 2025 में बढ़कर 29.9 हो गई है। जजों की भर्ती नहीं हो रही है, जिससे जजों पर केसों का बोझ चढ़ता जा रहा है। केस तेजी से क्लियर नहीं हो रहे हैं। पेंडिंग में चढ़ते जा रहे हैं। खराब स्थिति में गुजरात और सेकेंड पर छत्तीसगढ़ है। छत्तीसगढ़ में कानूनी सहायता की स्थिति ? कानूनी सहायता यानी गरीबों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करना, सभी के लिए न्याय तक पहुंच सुनिश्चित कराना है। छत्तीसगढ़ में कानूनी सहायता को लेकर बात करें तो 17 में 7वीं रैंकिंग मिली है, जो मध्य की रैंकिंग है। ये रैंकिंग बेहतर नहीं है। हालांकि 11 में से 7वें स्थान पर आ गया है। छत्तीसगढ़ ने कानूनी सहायता में अपने कुल कानूनी सहायता बजट का 87% योगदान करने के बावजूद, वह इसका केवल 77% ही उपयोग कर सका। नालसा फंड का उपयोग भी 2022-23 में घटकर 69% हो गया। लगभग 20,000 गांवों के लिए केवल एक कानूनी सेवा क्लिनिक है। छत्तीसगढ़ में एक कानूनी सहायता क्लिनिक को लेकर स्थिति खराब है। 2017 और 2024 के बीच, प्रति कानूनी सहायता क्लिनिक गांवों की संख्या 20 हजार है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 2025 ने कहा है कि न्याय व्यवस्था में तुरंत और बड़े बदलाव की ज़रूरत है। न्यायपालिका पर क्या बोले रिटायर्ड जस्टिस ? इंडिया जस्टिस रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए मदन बी. लोकुर ने कहा कहा कि यह संस्थाएं समान न्याय की हमारी प्रतिबद्धता का प्रतिरूप होनी चाहिए। दुर्भाग्यवश, न्याय पाने का बोझ आज भी उस व्यक्ति पर है जो न्याय मांग रहा है, न कि उस राज्य पर जो उसे प्रदान करना चाहिए। कानूनी राज और समान अधिकारों का वादा खोखला रहेगा- माया दारुवाला इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की चीफ एडिटर माया दारुवाला ने कहा, ‘’भारत एक लोकतांत्रिक और कानून से चलने वाले देश के तौर पर 100 साल पूरे करने की ओर बढ़ रहा है, लेकिन न्‍याय प्रणाली में सुधार तय नहीं होंगे, तो कानूनी राज और समान अधिकारों का वादा खोखला रहेगा।

More From Author

ट्रम्प हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की टैक्स छूट खत्म कर सकते हैं:₹18 हजार करोड़ की फंडिंग भी रोकी; ट्रम्प यूनिवर्सिटी पर कंट्रोल चाहते हैं

स्‍टूडेंट ने प्रिंसिपल ऑफिस की दीवारों पर लीपा गोबर:एक दिन पहले क्लासरूम की दीवारों पर प्रिंसिपल ने लगाया था गोबर, कहा था- ठंडक रहेगी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *