मिनटों में किराना पहुंचाने वाली क्विक कॉमर्स कंपनियां चुपचाप ग्राहकों पर अतिरिक्त बोझ डाल रही हैं। इसके लिए डिलीवरी के अलावा हैंडलिंग चार्ज, मेंबरशिप फीस, रेन फीस, प्रोसेसिंग फीस, प्लेटफॉर्म फीस और व्यस्त समय में सर्ज चार्ज भी वसूले जा रहे हैं। यह सब स्टैंडर्ड डिलीवरी और प्लेटफॉर्म चार्ज से अलग है। आईटी प्रोफेशनल सुरेश ने जब जेप्टो से 57 रुपए के स्नैक्स मंगवाए तो बिल 200 रुपए पहुंच गया। इसमें 13 रुपए हैंडलिंग चार्ज, 35 रुपए. स्मार्ट कार्ट फी, 75 रुपए डिलीवरी चार्ज और 1 रुपए मेंबरशिप फीस जुड़ी थी। जीएसटी ने कीमत और बढ़ा दी। अजीत ने ब्लिंकिट से 306 रुपए की आइसक्रीम मंगवाई। डिलीवरी चार्ज भले ही शून्य था, पर 9 रुपए हैंडलिंग व 30 रुपए सर्ज चार्ज जुड़ गया, जिससे बिल 346 हो गया। ये चार्ज ऐसे वक्त में लिए जा रहे हैं जब कंपनियां भारी घाटे में हैं। जनवरी-मार्च 2024 में ब्लिंकिट को 178 करोड़, स्विगी इंस्टामार्ट को 840 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। सर्वे रिपोर्ट… 62% ग्राहकों को सुविधा शुल्क देना पड़ रहा है रिलायंस, अमेजन जैसी कंपनियों के आने से बढ़ सकती है मौजूदा प्लेटफार्मों की चुनौती
रिलायंस की जियो मार्ट, अमेजन नाउ, फ्लिपकार्ट की मिनट्स जैसे नए प्लेयर आ रहे हैं। रिलायंस रिटेल के सीएफओ दिनेश तालुजा ने अर्निंग कॉल में बताया था कि उनके रोज के ऑर्डर 2.4 गुना बढ़े हैं। उनकी सर्विस में कोई छिपा शुल्क नहीं है। दावा… ग्राहकों को डिस्काउंट देने पर हर माह औसतन 1500 करोड़ रुपए तक का कैश बर्न
कंपनियां कहती हैं कि वे छूट व सुविधाएं देने पर हर माह औसतन 1,300-1,500 करोड़ रुपए का घाटा उठा रही हैं। बीएनपी परिबास के मुताबिक 2024-25 में 70 हजार करोड़ रुपए का मार्केट रहा। 2028 तक 2.6 लाख करोड़ रुपए का होगा। कंपनियां बताकर चार्ज लें तो दिक्कत नहीं, पर ऐसा होता नहीं, ये डार्क पैटर्न
लोकलसर्कल्स के फाउंडर और CEO सचिन तापड़िया कहते हैं कि क्विक कॉमर्स कंपनियों में पारदर्शिता की कमी है। अगर कंपनियां सारे चार्ज पहले से बताकर लें तो कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन ये अमूमन लास्ट मोमेंट में जुड़ते हैं। कई बार इनका ब्रेकअप क्लोज रहता है। फूड डिलीवरी, ऑनलाइन यात्रा, फिल्में और इवेंट टिकटिंग और अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सहित अन्य क्षेत्रों की कंपनियां भी इसी तरह के शुल्क लगा रही हैं। ग्राहक को गुमराह करके लागू किए गए बिल सीधे तौर पर डार्क पैटर्न दिखाते हैं। भारत सरकार ने 13 तरह के डार्क पैटर्न की पहचान की है। ड्रिप प्राइसिंग जैसे डार्क पैटर्न में कम कीमत दिखाकर, चेकआउट के समय अचानक अतिरिक्त शुल्क (जैसे हैंडलिंग, प्लेटफॉर्म, या सुविधा शुल्क) जोड़ना। इसी तरह बारिश में रेन चार्ज या आइटम हैंडलिंग शुल्क। उच्च मांग या स्टाफ की कमी होने पर अचानक अतिरिक्त शुल्क लगाने जैसे तरीके अपना रही हैं। बास्केट स्नीकिंग जैसे डार्क पैटर्न को लेकर भी शिकायतें बढ़ रही हैं।
